Monday 14 August 2017

मस्जिद की बात हो न शिवालों की बात हो


कल १५ अगस्त है. हम सब स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं.
१८५७ की क्रांति के महानायक बहादुरशाह जफ़र, जिन्होंने भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेत्रित्व किया था का शेर याद आ रहा है ...
"नाहक को तेरे दिल में भटकाव पड गया
काबे में जो है शेख वही बुतकदे में है."
भारत की संविधान सभा , जिसने भारत का संविधान बनाया उसमे पर्याप्त संख्या में मुसलमानो का प्रतिनिधित्व था. आज अगर उस संविधान सभा द्वारा बनाये गए संविधान को कोई मुस्लिम नकार रहा है तो वह भारत का नागरिक कैसे हो सकता है?
मद्रास से मोहम्मद इस्माइल साहिब ,टी. एम. अहमद इब्राहिम, महबूब अली बेग साहिब बहादुर, ....
बॉम्बे से अब्दुल कादर मोहम्मद शेख, आफताब अहमद खान,.... बंगाल से रघीब अहसान,, जासिमुद्दीन अहमद, नज़ीरुद्दीन अहमद, अब्दुल हमीद, अब्दुल हलीम गज़नवी, ....
संयुक्त प्रान्त से बेगम ऐज़ाज़ रसूल, हैदर हुसैन, हसरत मोहानी, अबुल कलाम आजाद, मोहम्मद इस्माइल खान, रफी अहमद किदवई, मो. हफिजुर रहमान,....
बिहार से, हुसैन इमाम, सैयद जफर इमाम, लतिफुर रहमान, मोहम्मद ताहिर, तजमुल हुसैन, चौधरी आबिद हुसैन, ....... मध्य प्रांत से काजी सैयद करीमुद्दीन,..... असंम से, मुहम्मद सादुल्लाS, अब्दुर रऊफ,........
जम्मू कश्मीर से, शेख मुहम्मद अब्दुल्ला, मोतीराम बैगरा, मिर्जा मोहम्मद अफजल बेग, मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी,.....
कोचीन से के ए मोहम्मद आदि विद्वान् मुस्लिम नेताओं ने न केवल संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि उसे स्वीकार भी किया.
फिर आज ऐसा क्या हो गया की आज कुछ मुसलमान को अपने ही पितामहों द्वारा बनाये गए संविधान पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं. उपरोक्त जिन मुस्लिम नेताओं ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वे सबके सब आज के किसी भी मुस्लिम नेता या मौलवी से ज्यादा विद्वान् और बुद्धिमान थे. इन सभी को मुस्लिम समाज के हितों और भविष्य की चिंता थी. अतः इन्होने भारत के संविधान में वे सभी ध्राएँ शामिल करवाई जो भारतीय मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए जरूरी थे.

उसके बाद भी जो मुस्लिम नेता अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए संविधान और कानून का विरोध कर रहे हैं, संविधान की मूल भावना के खिलाफ ज़हर उगल रहे हैं वे देश से ज्यादा मुसलमानो का नुकसान कर रहे हैं.

एक तरफ आरएसएस जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में कभी भाग नहीं लिया, जिस संगठन को तिरंगे से इतनी घृणा थी कि उसने स्वतंत्रता के 50 वर्ष बाद तक अपने नागपुर स्थित मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया और उसके सहयोगी संगठन विश्व हिन्दू परिषद् ,बजरंग दल , हिन्दू वाहिनी, गौरक्षक दल और उनकी संरक्षक बीजेपी देश को धर्मान्धता का पाठ पढ़ा रहे हैं दूसरी तरफ ओवैसी, आज़म खान, और उन जैसे मुस्लिम नेता उस आग में घी डाल रहे हैं.

जनसंघ जो BJP की मातृ संस्था है के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी मोहम्मद अली जिन्ना की अध्यक्षता वाली मुस्लिम लीग की बंगाल सरकार में मंत्री थे और उन्होंने हिंदू और मुसलमान जनसंख्या के नाम पर बंगाल विभाजन के पक्ष में वकालत की थी. 
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और जनसंघ की जिन्ना भक्ति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण यह है कि गांधी नेहरु परिवार को दिन-प्रतिदिन पाकिस्तान जाने की धमकी देने वाले इस संगठन ने मोहम्मद अली जिन्ना के परिवार को भारत में संरक्षण दिया.
मोहम्मद अली जिन्ना खुद तो पाकिस्तान चले गए लेकिन उनका परिवार आज भी हिंदुस्तान में कई हजार करोड़ रुपए की संपत्ति का मालिक है और बड़े आराम से अपना व्यवसाय फैला रहा है .
जनसंघ, BJP, हिंदू महासभा, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल आदि किसी संगठन ने आज तक कभी जिन्ना के परिवार के हिंदुस्तान  में रहने पर प्रश्नचिन्ह नहीं उठाया. यह इनके चरित्र को उजागर करता है.
RSS और डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का पूरे देश में विरोध किया था. 
ये सब देश और समाज का कितना अहित कर चुके हैं और कर रहे हैं इन्हें स्वयं नहीं पता.
चाहे वह मुसलमान नेता हो या हिंदूवादी पार्टियों के नेता, यह दोनों धर्म का इस्तेमाल सत्ता के सिंहासन पर कब्जा जमाने के लिए कर रहे हैं जो देश के लिए घातक है.

सभी देशवासी भाई बहनों से प्रार्थना...

मस्जिद की बात हो न शिवालों की बात हो
जनता की बात, उसके सवालों की बात हो.
पूजा की बात हो न अजानों की बात हो
हर आदमी के मुंह के निवालों की बात हो.
यदि हो सके तो गाय और गोबर को भुलाकर
बारिश में ढहती घर की दीवालों की बात हो.
भाषा और धर्म ,जाति की बातें बहुत हुई
इंसानियत की उम्दा मिसालों की बात हो.
बिके हुए अखबारों की चर्चा को छोड़ कर
ईमानदार चंद रिसालों की बात हो.
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की अनंत हार्दिक शुभकामनायें!
आपका,
नमन

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