Thursday 21 July 2011

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मित्रो, 
आज मुझ पर अगाध प्रेम रखने वाले मेरे अनन्य मित्र, बड़े भाई,
मेरे अपने आदरणीय श्री रमाकांत उपाध्याय जी का जन्मदिन है|
आज मैं उनसे अपने  पिछले ३३ वर्षों  के संबंधों को याद करते हुए 
पाता हूँ की हमने कितने दुःख - सुख, कितनी धूप और बरसातें साथ साथ देखी| हम अपनी  सारी कमजोरिओं और अच्छाइयों के साथ जीवनपथ पर आगे बढे| साथ की गयी शरारतों से लेकर  रचनात्मक कार्यों तक की यह यात्रा याद करके मन अविभूत है| मैं चाह कर भी सब 
आपसे नहीं बाँट पाउँगा, क्योंकि भावनावो को शब्दों में ढालना कभी कभी अत्यंत दुरूह हो जाता है| भाई श्रीयुत रमाकांत जी को जन्म दिन की अनंत शुभ कामनाएं! उन्हें अच्छे शेर बहुत पसंद हैं, अतः उनके जन्म दिन पर फेसबुक पर समय समय पर अपने मित्रों से संवाद स्थापित करते हुए उन्हें जो पंक्तियाँ प्रेषित करता रहा हूँ , उनमे से कुछ आज उन  तक पहुचाने के लिए ब्लॉग पर लिख रहा हूँ|

 मेरे सपनों के लिए, मेरी चाहत के लिए
दुवा वो करता रहा, मेरी मोहब्बत के लिए|
कल मेरे चाँद ने मेरे लिए इबादत क़ी
रब से मांगी है नींद, मुझ बेमुरव्वत के लिए||
                              
                    'नमन'
सुबह मरते हैं, शाम मरते हैं
मुफलिसी में तमाम मरते हैं|
जिन उसूलों क़ी बात करते हो
घर के चूल्हे न उनसे जलते हैं||
                              
               'नमन'

यकीन उसका न  करूँ  तो गुनहगार  बनू
यकीन  कर लू अगर उसका तलबगार बनू|
तमाम  ऊम्र  बिताई  है  धूप  में  हमने
आज मैं कैसे किसी चाँद का बीमार बनू ||
                                                     'नमन
'


दिल उसने मेरा तोडा
 जो दिल के करीब था|
जिसने दिया है दर्द
 मेरा ही हबीब था|| 'नमन'

 हमने दिए जला
ये हर एक मोड़ पर मगर
आना न था न आये वो मेरी गली कभी||
                                                         'नमन' 
 

दर्द जो उसने दिया था वो कसक बाकी है,
साँस में उसकी मोहब्बत क़ी महक बाकी है| 'नमन'



गीत जब भी लिखे किसीके लिए

उसको चाहा है  जिंदगी के लिए|

दोस्ती  में  दुवा     जरूरी      है

दोस्तों कि सलामती के लिए|| 

                                              'नमन'


 बिन बताये मेरे ख्वाबों में चले आते हो

मेरी नीदों में आके तुम मुझे सताते हो|

मेरी यादों क़ी गली में है आना जाना तेरा

आंख के रास्ते तुम दिल में उतर जाते हो|| 'नमन'




तेरी मासूमियत का ए  सनम  जवाब  नहीं

रखना बच्चो सा दिल इस दौर में आसान नहीं|

तेरे मुकाबिल नहीं है कोई यहाँ पर ए दोस्त

इश्क क़ी राह में अब देता कोई जान  नहीं|| 'नमन'




जिन चिरागों से दोस्ती क़ी है

आग घर में उन्ही से लगती है

कब बेगानों  ने घर जलाया  है

आगजनी दोस्तों ने ही क़ी है|| 'नमन'




आज खुश हूँ  कि किसीने मुझे आवाज तो दी

बरसों भटका हूँ इन गलियों में पागलों क़ी तरह|

ये मेरा  दर्द  मेरा  ज़ख्म मुबारक मुझको

जीते हैं इस शहर में लोग पत्थरों क़ी तरह|| 'नमन'

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